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25 August 2025

मूर्त और अमूर्त तकलीफ़ों को ढूँढ़ने निकले लेखक ने एक-एक कर चुना है भूले बिसरे खोये विषयों को। जैसे - गुमना, भूल जाना, मज़ाक़ बन जाना, विश्वास या उसका प्रयायरूपी, भरोसा...

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13 May 2023

प्रबंधन में हमें पढ़ाया गया एक रोचक विषय है ‘स्टेरिओटाइपिंग’। आप एक बैगेज लिए घूमते हैं कि फलां ऐसा ही होगा जबकि ऐसा सच नहीं होता। इस कहानी संग्रह ने जब मुझे चुना तो ऐस...

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12 May 2023

1. क़ैद इंसान हो सकते हैं ख्वाहिशें नहीं ख्वाहिशें सपनों की सहेलियां हैं और सपने पराधीन नहीं होते एक नदी बहती है एक नदी के...

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25 August 2025

कहानियाँ मुसलसल चलती हैं मुकम्मल होना इनका कभी भी तय नहीं था। ये कवितायें नहीं थीं। ये कहानियाँ जलने और बुझने के बीच भटक रही हैं जिसकी टीस आपको बेचैन कर देगी। पढ़कर लगे...

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25 August 2025

इस किताब को छूते ही लगा कड़क ठंड में धूप का एक टुकड़ा ही होती हैं कविताएँ, सच। बाह्य और अंतर्दृष्टि को एक साथ अंतस से जोड़ते हुए कवि का मन जो देख पाता है वह साधारण नेत्र कहा...

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25 August 2025

‘वजूद और परछाई’ - दिलीप कुमार, आत्मकथा - दिलीप कुमार द्वारा उदयतारा नायर को सुनाई गयी और लिखी गयी जिसका हिन्दी में उतना ही सुंदर अनुवाद प्रभात रंजन ने किया है। प्रकाशक -...

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