ममता कालिया की संस्मरणात्मक किताब ‘जीते जी इलाहाबाद’ पर यतीश...
(Narrative Poetry)
'शहर- पुड़िया में बाँध कर हम नहीं ला सकते साथ' तो क्या! यह एक पंक्ति कई प्रश्नों के सिरे एक साथ छूती है और फिर हर सिरा अपना छोर ढूंढ़ने एक ही दिशा की ओर निकल पड़...
'शहर- पुड़िया में बाँध कर हम नहीं ला सकते साथ' तो क्या! यह एक पंक्ति कई प्रश्नों के सिरे एक साथ छूती है और फिर हर सिरा अपना छोर ढूंढ़ने एक ही दिशा की ओर निकल पड़...
स्मृतियों के प्रेत से मुक्ति पाने के लिए लिखना एक अलग आयाम के साथ नयी अभिव्यक्ति की आधारशिला बुनता है। लेखिका की पाती पढ़ते हुए एक ईमानदार लेखनी की ख़ुशबू आ रही है जो...
पानी जिस लेखिका के लिए आईना हो, पक्षियों में भी वह तीसरे को देख लेती हैं, फिर एक मछली को देखते हुए किंगफ़िशर को देखने लगती हैं मन में प्रार्थना लिए! मछलियों को खाने नह...
मूर्त और अमूर्त तकलीफ़ों को ढूँढ़ने निकले लेखक ने एक-एक कर चुना है भूले बिसरे खोये विषयों को। जैसे - गुमना, भूल जाना, मज़ाक़ बन जाना, विश्वास या उसका प्रयायरूपी, भरोसा...
प्रबंधन में हमें पढ़ाया गया एक रोचक विषय है ‘स्टेरिओटाइपिंग’। आप एक बैगेज लिए घूमते हैं कि फलां ऐसा ही होगा जबकि ऐसा सच नहीं होता। इस कहानी संग्रह ने जब मुझे चुना तो ऐस...
1. क़ैद इंसान हो सकते हैं ख्वाहिशें नहीं ख्वाहिशें सपनों की सहेलियां हैं और सपने पराधीन नहीं होते एक नदी बहती है एक नदी के...