रश्मि शर्मा के कहानी-संग्रह ‘बन्द कोठरी का दरवाजा’ पर यतीश कुमार की समीक्षा

On 22 October 2024 by रश्मि शर्मा

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पानी जिस लेखिका के लिए आईना हो, पक्षियों में भी वह तीसरे को देख लेती हैं, फिर एक मछली को देखते हुए किंगफ़िशर को देखने लगती हैं मन में प्रार्थना लिए! मछलियों को खाने नहीं चूमने पर यक़ीन करने वाली, गंगा की छोटी-छोटी लहरियों सी सुंदर पंक्तियाँ रचने वाली लेखिका स्मृति की वीथियों से गुजरती हैं अतीत की तहाई चादर खोलती हैं और फिर कविता रचते-रचते कहानी रचने लगती हैं जो 'बन्द कोठरी का दरवाजा’ एनामक एक संग्रह में तब्दील हो जाता है।

कुछ उदासियाँ ज़िंदगी में पहले से तय होती हैं पर हम इसे उसी तरह नहीं अपनाते हम थोड़े और दुखी हो लेते हैं जबकि उदासियाँ और दुख दोनों अलग-अलग हर्फ़ हैं अपने अलग मायने के साथ। प्रेम में दुखी होना और उदास होने का फ़र्क़ प्रेमी ही बता सकता है। यह सब बातें रश्मि की कहानियों में देखी जा सकती हैं। रतजगा को आँख में समेटे शब्दों में इतनी खूबसूरती से उकेरना किताब की ओर आकृष्ट कर रहा है। शवों से चटकती आवाज़ों के दृश्य को अनुराग और वैराग्य के तराज़ू पर कसते हुए लिखा गया अंश लेखिका के प्रति संभावनाओं के दीप जला रहा है।

विकर्षण के आकर्षण को रचते हुए लेखिका प्रश्न छोड़ते हुए आगे बढ़ जाती हैं कि क्या जलती चिता को कोई कोंच सकता है निर्विकार ? अस्तित्व का मिट जाना और स्मृति में ज़िंदा रहने को असि नदी का गंगा में विलुप्त होने की बात का कहानी में यूँ ज़िक्र आना कथाकार की तैयारी और कहानी से जुड़ाव दर्शाता है। विलीन होने के संदर्भ में इतना सुंदर उदाहरण पंडित जगन्नाथ और लवंगी के साथ `गंगालहरी’ के पाठ के पीछे की कहानी भी दर्ज है। पढ़ते हुए वहाँ पर थोड़ी देर को ठहर गया और याद आया “प्रेम लहरी”, त्रिलोकी नाथ पांडेय जी का लिखा अनोखा उपन्यास। यह सुखद संयोग होता है जब एक किताब आपको दूसरी किताब का पता बिना नाम लिए बता देती है।

लेखिका स्निग्ध स्पर्श का ज़िक्र करते हुए लिखती हैं कोई छू ले और दाग भी न पड़े ! ये पंक्तियाँ लेखिका के प्रति आश्वस्ति है जिन्हें कथ्य और शिल्प दोनों की समझ बराबर है। साझे पदचापों के बीच सुबकती चुप्पी को बहुत अच्छे से व्यक्त किया है रश्मि ने। गंगा और डल झील के बीच डोलता ऊहापोह और गंगा लहरी और आयतों के बीच डोलना, रश्मि ने पहली कहानी `महाश्मशान में राग विराग’ रच कर सिद्ध किया कि भले यह उनका पहला संग्रह है पर वे अपने कथ्य शिल्प और क्राफ्ट को ठोक बजा कर आयी हैं। कोई जल्दबाजी में लिखी पंक्ति नहीं दिखी, पढ़ते हुए कहीं स्किप करने की ज़रूरत नहीं महसूस किया और यह एक लेखक के लिए प्राप्ति से कम नहीं।

अगर उपयुक्त शब्दों में आप दृश्य रच रहे हैं और दृश्यों की लड़ी एक फ़िल्म गढ़ रही है जिसमें रोचकता निरंतरता में उपलब्ध हो तो ऐसा लगता है लेखनी ने अपना काम कर दिया। रश्मि के पास यह शिल्प है और मुझे थोड़ा आश्चर्य भी हो रहा है पहले संग्रह में ऐसी परिपक्वता मुझे सोचने पर मजबूर कर रही है कि इनके गद्य को पहले क्यों नहीं पढ़ा।

इनकी कहानियों में त्रिकोण की संभावना बनी रहती है। तीन कबूतर की बात हो या मैंग्रोव वन का त्रिकोण। 'उसका जाना’ में एक जगह माँ, रंजीता, सपना और सपना की माँ सबके चेहरे प्रियम को एक जैसे दिखते हैं और मुझे पंक्तियाँ याद आती है संभावनाओं की शक्ल माँ जैसी है और ममता का चेहरा एक ही होता है। 'अंतिम यात्रा' में लाल चटक रंग देख प्रियम की प्रतिक्रिया रुला देती है पिता आज भी माँ के रंग का ख़्याल नहीं रख पाते। कहानी में एक नेपथ्य बहुत मज़बूती से अपनी टेर लगाता है जिसकी गूँज पाठक के हृदय की घंटी बजाती है। आँखें बस नम हो जाती हैं। चिंगारियाँ बुझ गई ताप कम नहीं हुआ पाठक की आँखों में रह गया।

कहानी का अंत कहना कहानी का सबसे मुश्किल पक्ष होता है और उसकी टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है। रश्मि को इस बात की बधाई कि अंत पढ़कर इस बात से संतुष्टि मिलती है कि अंत टाइमिंग और कंटेंट के साथ ख़त्म हो रहा है।लेखिका का पानी से प्रेम लगभग हर कहानी में उभर आता है। कभी डल लेक तो कभी गंगा तो कभी फल्गु या कभी जल फुहार या फिर निरंजना और मोहनी का संगम ही क्यों न हो। यह एक प्रकार से ममता और भावनाओं के प्रवाह का द्योतक है।

'निर्वासन' कहानी पढ़कर लगा राम आज भी पितृसत्ता का पक्ष लिए खड़े हैं। स्त्री का साथ स्त्री ने दिया होता तो स्थिति बहुत बेहतर हो सकती थी पर यह आज भी नहीं हो रहा। इस तरह मिथक को रिक्रिएट करना जोखिम भरा काम है पर यहाँ रश्मि जोखिम बखूबी उठाती हैं और उसमें सफल भी होती हैं। कहानियों में विषय विविधता और कुछ एक में नये प्रयोग एक आश्वासन की तरह है कि कहानीकार की यात्रा की शुरुआत सजग मन से हुई है। आधार मज़बूत है और अभी आशाओं की मंज़िल और चढ़नी है। शब्दों का समुचित सुंदर संतुलित प्रयोग देखकर बहुत अच्छा लगा।

‘मनिका का सच’ कहानी गाँव की आज की सच्चाई अंध विश्वास और उसके बीच एक स्त्री के जीवन से जूझने की कहानी है । यह अच्छा है कि संग्रह में अलग- अलग विषय को केंद्र में रखा गया है ताकि अलग-अलग दुनिया में पाठक भ्रमण कर सके मोनोटोनी न हो। लाली जैसे किरदार को गढ़ना किसी बहुत व्यक्तिगत अनुभव को उकेरने जैसा है। आज के समय में ऐसे किरदार होते हैं जहाँ भावनाएं लॉजिक से आगे निकल जाती हैं। कोई तार जो टेलीपैथी की तरह किसी और दुनिया से जुड़ा मिलता है और हम अपने विवेक को कहते हैं भाई थोड़ी देर के लिए सो जा दिल से काम लेना है।

संग्रह की शीर्षक कहानी `बन्द कोठरी का दरवाज़ा’ का विषय भी परमानेंट इंपोटेंसी और मुस्लिम परिवार में गे लड़का और एक सपने देखने वाली स्वच्छंद लड़की की है। दोनों की ज़िंदगी के ट्विस्ट के साथ मुस्लिम समुदाय और संयुक्त परिवार की झलक भी है। कहानी एक सकारात्मक मोड़ लेती है अंत में। स्वच्छंदता की जीत होती है। निर्णय लेने में देरी भले दिखाई गई है पर ख़ुद के बारे में नसरीन सोचती है और यही संदेश भी है।

हर कहानी का अपना जायका है। आप एक की तुलना दूसरे से नहीं कर सकते। एक जगह थोड़ा सा ठिठका पढ़ते हुए,  मुंबई में ठंड का ज़िक्र थोड़ा अटपटा सा लगा। कहानी के साथ फिट नहीं बैठा। रश्मि शर्मा को ढेर सारी शुभकामनाएँ एक उम्मीद बनने के लिए आप और अच्छी कहानियाँ लिखते रहिए हमें इंतज़ार रहेगा।