विजयश्री तनवीर के कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' पर यतीश कुमार की काव्यात्मक समीक्षा

On 13 May 2023 by यतीश कुमार

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प्रबंधन में हमें पढ़ाया गया एक रोचक विषय है ‘स्टेरिओटाइपिंग’। आप एक बैगेज लिए घूमते हैं कि फलां ऐसा ही होगा जबकि ऐसा सच नहीं होता। इस कहानी संग्रह ने जब मुझे चुना तो ऐसा ही कुछ हुआ। बहुत सकुचा कर अपना बैगेज लिए मैंने इसके पहले खाने को खोला पर वो एक माशूका-सी निकली, बिल्कुल वैसी नहीं जैसा पहले सोचा था फिर भी मैं पूरी तरह उसकी गिरफ़्त में आ गया।
सच पूछिए तो विजयश्री तनवीर ने मुझे कई मायनों में अचंभित किया, शब्दों के चयन और उनके सर्वोत्तम प्रयोग के साथ कहानी अपने अलहदा कथ्य में निपुण शैली लिए बेहद दिलचस्प होती जाती है। छोटी, पर सर्पीली कहानियाँ रेंगने की छाप छोड़ती जाती हैं। पीठ में हर बार हलचल होती है यहाँ तक कि कहानियाँ एक बारगी सोचने पर मजबूर करती चली जाती हैं। उम्र से परे हैं कहानियाँ और प्रेम की कोई उम्र नहीं होती। हर कहानी में मिलन चाहना की मिश्री चखता है और फिर इमली की डली बना कर निगलता है।

इतने गौर से शादी के बाद दोबारा या बारहा प्रेम होना मेरी समझ से परे रहा है, पर इन कहानियों में लगता है जैसे पड़ोस की ही तो बात है। कहानी में आप किरदार नहीं होकर भी किरदार में ख़ुद को ढूँढ़ने लगते हैं तब कहानी का असल जादू सिर चढ़ कर बोलता है और यही लेखक की असली जीत होती है। कुछ कहानियाँ साथ चलते-चलते, प्यार करते-करते अचानक डरा देती हैं, यहाँ सिहरन, कहानी की उपलब्धि है। कहानी में दरवाज़ा खुलता है प्रेम प्रवेश करता है फिर एक बारगी दरवाज़ा भड़ाक से बंद हो जाता है, ज़िन्दगी दोराहे से बेराहे खड़ी मिलती है ! क़िस्सा समाप्त, पर साँसत फुसफुसाहट जारी है......

अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार पढ़ते हुए लिखी गयी कविताएँ

1.
साँझ साँवली हो रही है
और फिर भी तुम नहीं हो
गुज़श्ता लम्हा हो तुम
या हर लम्हें का असल शग़ल

पसलियों के भीतर दिल भी
पिंजड़े में क़ैद है
तुम्हें देखते ही हलक दरवाज़ा बन जाता है
और दिल सोन चिरैया

उसे देखते ही
अनार के दानों की तरह
हँसी के ज़र्रे बिखर जाते हैं
तबीयत थोड़ी और निखर जाती है

चेहरे की लुनाई नहीं बदली
समय बदला है
आदत नहीं बदली
पर डिठौना अपनी जगह बदल चुका है

तभी एक कोने से
छुपी हुई विद्रूप हँसी खनकी
और दो लहरें मिलते-मिलते
वापस अपने किनारों में खो गयीं

2.
कोई यह कह दे
कि तुम मेरे भीतर साँस ले रहे हो
और सुनकर किसी को करंट लग जाये
बग़ावत की चिरांध ने अभी-अभी करवट ली है

इस बार बग़ावत ऐसी
कि मरने के बाद भी
दोबारा उसके जिस्म में
साँसे ले रहा है

जिस्म जल गया
चीख़ें दीवार पर चस्पि हुई हैं
बस ज़िंदा हैं तो
क़ैफ़ियत तलब करती आँखें

एक सयानी औरत के केंचुल में
लिपटी है अंधी प्रेयसी
डरती है सबसे ज़्यादा
काजल का कीचड़ बनने से

हर बार पाकर यही लगता है
कुछ और नहीं चाहिए
कुछ और एक शब्द है
जो हर बार अपने बोसे छोड़ देता है पाने के बाद

3.
उसने कहा मैं ख़्वाब बेचती हूँ
जवाब मिला
ख़्वाब खरीदे नहीं
उगाए जाते हैं

उसकी देह की चपलता
उसके जाने के बाद
ज़्यादा कुलाँचे मारती है
और दो हिरनी आँखें हमेशा छोड़ जाती हैं

तुम्हारे लौटने से पहले
अगरु की खुशबू आती है
वर्जनाओं को विखंडित करने वाली
खुशबू समेटने का फन ढूंढ़ता हूँ

आती नहीं है खुशबू
प्रवेश करती है
ऐसी खुशबू के साथ चल सकते हैं
कहीं पहुँच नहीं सकते

4.
चुप पड़ी चीजें
निस्तेज जागती हैं
इंतज़ार एक लंबी बीमारी है
डॉक्टर को भी आ सकती है

कलाकार हमेशा प्रेम करता है
और प्रेम में
ख़ुद से लड़ता है
त्रिशंकु पूर्व में कोई कलाकार ही होगा

काया जब सिम्फनी बन जाती है
तो आदमी
रंजीदा से संजीदा
और फिर नदीदा बन जाता है

कोई रेगिस्तान बनता है
तो कोई रेगिस्तान का झरना
और फिर रेगिस्तान ख़ुद समंदर
दरअसल काले जादू के बाद सब मुमकिन है

5.
बाहर फैली बर्फ़ की चादर देखता हूँ
बुर्राक सफ़ेदी भीतर छाती है
उसी शाम जलती मोमबत्तियाँ देखता हूँ
वहीं भीतर बुरादे जल रहे होते हैं

उसकी मन्नतें
आयत से गिरे शब्द हैं
अदीठ, अबूझ, अनजान रास्तों पर चलकर
प्रेम पानी पर लकीर खींचे चला जा रहा है

आँखों का ताल कटोरा
मेरे लिए कन्फेशन बॉक्स है
और उसका स्पर्श
सच बोलने के लिए बढ़ायी गयी किताब

6.
नश्वर भी प्रेम करते हैं
प्रेम में ईश्वर का
आना और चले जाना
कितना आसान होता है

वजूद की आज़ादी
और बंधनों से प्रेम
दो रास्ते एक साथ नहीं चल पाते
उन्हें चौराहों पर अलग होना होता है

शब्द-कोष से इन दिनों निस्तार ग़ायब है
और कुछ मुर्दा आवाज़ें नक़्श बनाकर
चारों ओर डेरा डाले हैं
मछलियाँ समंदर से निकल एक्वेरियम में समा रही हैं

एक बुलबुला गलफड़े से निकल
दूसरी की साँस बन रहा है
दुनिया की सारी रंगीनियत इन दिनों
एक्वेरियम में क़ैद है