उर्मिला शिरीष के उपन्यास ‘चाँद गवाह’ पर यतीश कुमार की समीक्ष...
(Narrative Poetry)
'चाँद गवाह' जीवन के अधूरेपन में प्रेम की परिपूर्णता खोजती हुई विपरीत धुरी पर घूमती स्त्री के मन के गहरे उद्वेलन की कथा है। वहाँ उस बवंडर में कुछ छपाक हुआ और वि...
'चाँद गवाह' जीवन के अधूरेपन में प्रेम की परिपूर्णता खोजती हुई विपरीत धुरी पर घूमती स्त्री के मन के गहरे उद्वेलन की कथा है। वहाँ उस बवंडर में कुछ छपाक हुआ और वि...
दोहे और मुहावरों को अमरत्व प्राप्त है और अगर कहानियाँ इस ओर मुखर होकर अमरत्व चख लें तो मुहावरों में बदल जाते हैं। लेखनी का मुहावरों में बदलना कोई असाधारण घटना नहीं हो...
इस किताब को पढ़ते हुए मेरा मन एक बायस लिए है क्योंकि मुझे पुण्डरीक जी की वो कविताएँ बेहद पसंद है जो परिवार के इर्द गिर्द घूमती हैं । अब आगे देखा जाए मेरा पूर्वाग्रह टू...
कुछ उत्तर प्रश्नों का विस्तार करते हैं तो कुछ निस्तार, पर यहाँ प्रश्नों की लड़ियाँ उसके प्रतिबिम्बित उत्तर के साथ खड़ी मिलेंगी। असार से सार पृथक करने का यह अथक प्रयास आश...
वो डरते हैं मेरे सपनों से राकेश मिश्र अपनी कविताओं की श्रृंखला के शुरुआत में ही संवाद और उसके विस्तार पर ज़ोर देते हैं। सच है कि आज ज...
1. समय की टहनी पर टंगा चाँद निहारता है मुझे और अपनी ही छाया की गिरफ़्त में छटपटाती हूँ मैं सीली-सी रात मेरी सहेली और कौतुक...