नीलकमल की आलोचना की किताब ‘गद्य वद्य कुछ’ पर यतीश कुमार की समीक्षा

On 22 October 2024 by नीलकमल

blogbanner

जो होता है अच्छे के लिए होता है । उस दिन जब धुआँ धुआँ रूह नीलांबर कोलकाता की नाट्य प्रस्तुति देखने गया तो नीलकमल जी पहले से बैठे मिले। मैंने उनसे मिलते ही उनके नए गद्य पुस्तक की बात कर दी और उन्होंने मुझे वहीं पर अपना यह संग्रह सप्रेम भेंट कर दिया। लौटकर जब इस पुस्तक के दो चार पन्नों को एक दो बार पलटा तो सोचने लगा बहुत समय लगेगा इसे पूरा करने में। कोई कविता या कहानी तो है नहीं। आलोचना है और कितने देर लगातार किसी की आलोचना झेला जाएगा।

यक़ीन मानें उसी रात लगभग आधी और बाक़ी आज की यात्रा में ख़त्म हो गयी। यह पुस्तक कवि त्रिलोचन की स्मृति में समर्पित एक आलोचनात्मक गद्य पुस्तक है जिसमें नए पुराने कई कवियों की कविताओं पर अच्छी विवेचना की गयी है। मुझ जैसे नौसिखिया के लिए तो एक साहित्यिक फ़िल्म की तरह है जिसे पढ़ कर ऐसा महसूस हो रहा है जैसे अभी -अभी किसी बहुत ही प्रिय शिक्षक की क्लास में बैठ कर बाहर आ रहा हूँ ।अच्छे शिक्षक की कक्षा में आपको वक़्त का पता नहीं चलता और साथ में ज्ञान वर्धन प्रचुर मात्रा में। इतनी अच्छी प्रवाह में लिखी गयी है जैसे कई बार गद्य काव्य लगने लगा।

अगर ईमानदारी से ऐसा लगे किसी भी किताब के पढ़ने के बाद कि इसकी पंक्तियाँ चुरा लूँ तो मुझे लगता है किताब का लिखना सफल हो गया। व्यक्तिगत तौर पर मैं नील कमल जी का ऋणी हो गया जिस किताब ने मुझे मार्ग दर्शन का एहसास कराया। ऐसे कई लोगों से परिचय कराया जिसे मुझ जैसा विद्यार्थी जानता तक नहीं। एक ललक जग गयी कि अब इन सभी को बारी- बारी से पढ़ा जाए।

कविताओं को समझने का भी एक तरीक़ा सिखाया गया है ।अलग अलग नजरिए से एक ही पंक्ति को कैसे देखा जा सकता है। और हाँ ये भी अच्छा लगा जिन कवियों को आप व्यक्तिगत रूप से जानते है और कुछ से अभिन्न मित्रता है उनकी कविताओं की बारीकियों को समझना और भी सुखद रहा। जैसे आशुतोष दुबे, गीत चतुर्वेदी कई साथी  जिनके साथ मैंने अनमोल क्षण बिताए जैसे अष्टभुजा शुक्ल, राजेश जोशी, अनामिका, वीरेन डंगवाल, आलोक धन्वा, ऋतुराज,कात्यायनी।  

मैं फिर से नील कमल जी को बधाई देता हूँ कि बड़ी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ ये रचना लिखी गयी और धन्यवाद भी देता हूँ एक अच्छी आलोचनात्मक पुस्तक हिंदी साहित्य के पटल पर प्रस्तुत करने के लिए।