अच्छा संस्मरण वह है, जो आपको भीतर तक उद्वेलित करे। इस मायने में युवा लेखक यतीश कुमार की किताब ‘बोरसी भर आँच : अतीत का सैरबीन’ वाकई लाजवाब है। इस पुस्तक का हर चैप्टर जादुई है। दिल को तसल्ली होती है कि हमारे आसपास ऐसा शख्स भी है, जो बहुत तल्लीन होकर लेखन कर रहा है। इस संस्मरणात्मक पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि राधाकृष्ण पेपरबैक्स में ‘बोरसी भर आँच’ का पहला संस्करण फरवरी, 2024 में आया और तीसरा संस्करण मई, 2024 में। अब तो ‘बोरसी भर आँच’ का चौथा संस्करण भी आ चुका है।
21 अगस्त, 1976 को बिहार के मुंगेर में जन्मे यतीश कुमार ने पिछले चंद सालों में यात्रा-वृत्तांत से लेकर कविता, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक विशिष्ट शैली के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। पर यतीश कुमार की ‘बोरसी भर आँच’ दिल और दिमाग दोनों को भीतर तक स्पर्श करती है और आखिर में ‘वाह’ निकल ही जाता है। ‘अस्पताल तक जाती नदी’ से यह संस्मरण शुरू होता है और जैसे-जैसे इसके पृष्ठ पलटते हैं कवि आलोक धन्वा के शब्दों में यतीश कुमार की ‘स्मृतियों की तपन’ और गहरी होती जाती है। ‘स्मृति के रंग में होली’ तक आते-आते ठिठक जाता हूँ।
यतीश कुमार लिखते हैं- मन एक अजायबघर है, जहां स्मृतियां अलग-अलग रूप में पनाह लेती हैं और रात्रि के एकांत में अर्द्ध- चैतन्य से बाहर निकलकर चेतना के मनोभाव पर नृत्य करने लगती हैं। ‘बड़की अम्मा’ भी एक यादगार खंड है, जिसमें यतीश के ननिहाल का विस्तार से वर्णन है।
बीमार रहने की वजह से कुछ चैप्टर धीरे-धीरे पढ़ पाया। लेकिन एक आश्वस्ति के साथ यह खत्म हुआ और लगा यतीश कुमार को बार-बार पढ़ा जाना चाहिए। धन्यवाद कवि आनंद गुप्त को, जिनके सौजन्य से यतीश कुमार की लिखी संस्मरणों की इस अनूठी किताब को पढ़ पाया। आखिरी पृष्ठ पर वरिष्ठ लेखक उदय प्रकाश ने गलत नहीं लिखा है- ‘पूरी उम्मीद है समकालीन रचनात्मक परिदृश्य में बोरसी भर आँच अपनी खास जगह बनाएगी।’